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Wednesday, 25 July 2012


* तुम भी देखलो एक बार करके प्यार ,
इसका तो नशा ही कुछ और है ।
यूँ सूकून मैं जीना भी क्या जीना ,
बर्बाद होने का मज़ा ही कुछ और है ।।

रात भर उल्लू की तरह जागने का मज़ा
घोड़े बेचकर सोने वाले क्या जाने ?
चांदनी रात में तारे गिन्नने का
यारों मज़ा ही कुछ और है ।।

अपनों की भीड़ मैं खिलखिलाने वाले
तन्हायिन्यों  का आलम क्या जाने ?
न आने वाले का करना इंतज़ार
इस पागलपन का मज़ा ही कुछ और है ।।

(और आजकल के प्यार पर ज़रा गौर फरमाईयेगा .......)

मोबाइल का बैलेंस ख़त्म होने का दर्द,
वो मिस्सेड कॉल  करने वाले क्या जाने ?
ऑरकुट से फेस  बुक तक का सफ़र
ऐड  और अन्फ्रेंद  करने का मज़ा ही कुछ और है ।।
                                               सीमा राजपूत
                                             २५ जुलाई २०१२

4 comments:

  1. bahut accha likha hai apne

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  2. अति सुंदर...बहुत खूब लाजवाब रचना है..

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    1. जी शुक्रिया भाई साहब ।

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