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Friday, 22 June 2012


*तेरी यादों की किताब को सीने लगाये रहते हैं ,
 हम तो यूँही समुंदर की आघोष में रहते हैं |

सूरज निकलने को है,मछलियों की अठखेलियाँ,
बादलों की शरारत या चिड़ियों का हो संगीत ,
कैसे कोई उठाये इस नींद से हमें ,
 हम तो यूँही तेरे सपनो में खोये रहते हैं |

उसने जो ना मिलने का वादा किया है ,
अब तो हमने भी ना उठने की कसम खायी है ,
न कोई जंग है ना कोई लडाई है ,
हम तो यूँही मोहब्बत के इम्तिहान लेते हैं |

तेरी यादों की किताब को सीने लगाये रहते हैं ,
हम तो यूँही समुंदर की आघोष में रहते हैं |

                                          सीमा राजपूत
                                          २२ जून २०१२

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