*बाहर का शोर और बढ़ा दो ,
अंदर का शोर कम नहीं होता ?
कैसे तुझे चाहूँ कि तुझे प् लूँ ,
क्यूँ तू मेरा हमदम नहीं होता ?
एक तेरे लिए मैं ही नहीं हूँ ,
चमन में गुलिस्तान और भी हैं ,
मैं जानती हूँ क्या हूँ तेरे लिए ?
फिर भी ये दिल तुझसे बेजार नहीं होता ?
हर बार तुझे याद किया करते हैं ,
हर बार भूल जाने की कसम खायी है ,
तेरी हर निशानी मिटा दी हमने ,
फिर क्यूँ ख़तम ये इंतज़ार नहीं होता ?
सीमा राजपूत
२७ जून २०१२
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