Pages

Saturday, 27 October 2012


* कहने में कितना आसान,
करने में कितना मुश्किल,
निभा जाओ तो सब आसान,
वरना जीना भी मुश्किल ।

कहने को तीन लव्ज़ ,
सुनो तो ढाई अक्षर,
कर गुजरो तो ज़िन्दगी,
वरना काले सब अक्षर ।

कैसे हसके टालोगे,
तुमभी बचना पाओगे,
गुजरोगे इन गलियों से,
तो खुशबु लेकर जाओगे ।सीमा राजपूत "परी"
                                         26 oct 2012

Sunday, 16 September 2012


न उसकी कैद अच्छी ,
न उसकी रिहाई अच्छी  है "परी" ।
कैद में दम खुटता है,
और रिहाई में  दम निकलता है।।
                सीमा राजपूत "परी"
                 १५ सितम्बर २०१२

Tuesday, 4 September 2012


* कोई साथ हो तो वीरानो मैं भी फूल खिल जायेंगे ।
तुम आवाज़ तो दो सही, हम वहीँ  नज़र आएंगे ।।
                                                सीमा राजपूत
                                              ३० अगस्त २०१२

Tuesday, 21 August 2012

                        वो कमबख्त
* आज दाल-चावल खाते-खाते उसकी याद आ गयी ।
इसी तरह मिलकर हमने अमेरिकेन चौपसी खायी थी ।।
मैं मिलाती थी,और वो मेरी चम्मच से लेलेता था ।
और आज देखो उस कमबख्त को,,,,,,,,,,,,
पांचो मैसेज जाने किसे कर रहा है ??????

उस दिन भी आईस-क्रीम खाते हुए उसकी  याद आ गयी ।
इसी तरह सड़क के किनारे खड़े होकर आईस-क्रीम खाते थे ।।
वो अपनी ख़त्म करके मेरी खाने के चक्कर में रहता था ।
और आज देखो उस कमबख्त को,,,,,,,,,,,,
पांचो मैसेज जाने किसे कर रहा है ??????


याद में उसकी हमने डोसा और बर्गेर खाना छोड़ दिया ।
कोल्ड-ड्रिंक और कोल्ड कौफी  का स्वाद भी भुला दिया ।।
साथ गुजारे थे जो लम्हे ,उनकी  यादों  ने रुला दिया ।
और आज देखो उस कमबख्त को,,,,,,,,,,,,
पांचो मैसेज जाने किसे कर रहा है ??????


                                                           सीमा क राजपूत
                                                           २१ अगस्त २०१२

Monday, 6 August 2012

* जब भी उसका ख्याल आता है,
जाने चैन कहाँ जाता है ?
नींद उड़ जाती है पंख लगाकर ,
सब्र-ओ- करार कहाँ आता है ।।

इन बेचैनियों का सबब  कौन जाने ,
उसकी निशानियों को कौन पहचाने ,
एक याद ही नहीं करती बेकरार,
शैतानियों का असर कहाँ जाता है ।।

Wednesday, 25 July 2012


* तुम भी देखलो एक बार करके प्यार ,
इसका तो नशा ही कुछ और है ।
यूँ सूकून मैं जीना भी क्या जीना ,
बर्बाद होने का मज़ा ही कुछ और है ।।

रात भर उल्लू की तरह जागने का मज़ा
घोड़े बेचकर सोने वाले क्या जाने ?
चांदनी रात में तारे गिन्नने का
यारों मज़ा ही कुछ और है ।।

अपनों की भीड़ मैं खिलखिलाने वाले
तन्हायिन्यों  का आलम क्या जाने ?
न आने वाले का करना इंतज़ार
इस पागलपन का मज़ा ही कुछ और है ।।

(और आजकल के प्यार पर ज़रा गौर फरमाईयेगा .......)

मोबाइल का बैलेंस ख़त्म होने का दर्द,
वो मिस्सेड कॉल  करने वाले क्या जाने ?
ऑरकुट से फेस  बुक तक का सफ़र
ऐड  और अन्फ्रेंद  करने का मज़ा ही कुछ और है ।।
                                               सीमा राजपूत
                                             २५ जुलाई २०१२

Friday, 20 July 2012

*फुर्सत से कभी फुर्सत निकाल कर तो देखो ।
शान-ए-अवध मे शाम  गुजार कर तो देखो ।
हम भी लौट आने का होसला  रखते हैं ।
तुम कभी दिल से पुकार कर तो देखो ।।
                                   सीमा राजपूत
                                २० जुलाई २०१२