Wednesday, 27 June 2012
Tuesday, 26 June 2012
*बाहर का शोर और बढ़ा दो ,
अंदर का शोर कम नहीं होता ?
कैसे तुझे चाहूँ कि तुझे प् लूँ ,
क्यूँ तू मेरा हमदम नहीं होता ?
एक तेरे लिए मैं ही नहीं हूँ ,
चमन में गुलिस्तान और भी हैं ,
मैं जानती हूँ क्या हूँ तेरे लिए ?
फिर भी ये दिल तुझसे बेजार नहीं होता ?
हर बार तुझे याद किया करते हैं ,
हर बार भूल जाने की कसम खायी है ,
तेरी हर निशानी मिटा दी हमने ,
फिर क्यूँ ख़तम ये इंतज़ार नहीं होता ?
सीमा राजपूत
२७ जून २०१२
Friday, 22 June 2012
*तेरी यादों की किताब को सीने लगाये रहते हैं ,
हम तो यूँही समुंदर की आघोष में रहते हैं |
सूरज निकलने को है,मछलियों की अठखेलियाँ,
बादलों की शरारत या चिड़ियों का हो संगीत ,
कैसे कोई उठाये इस नींद से हमें ,
हम तो यूँही तेरे सपनो में खोये रहते हैं |
उसने जो ना मिलने का वादा किया है ,
अब तो हमने भी ना उठने की कसम खायी है ,
न कोई जंग है ना कोई लडाई है ,
हम तो यूँही मोहब्बत के इम्तिहान लेते हैं |
तेरी यादों की किताब को सीने लगाये रहते हैं ,
हम तो यूँही समुंदर की आघोष में रहते हैं |
सीमा राजपूत
२२ जून २०१२
हम तो यूँही समुंदर की आघोष में रहते हैं |
सूरज निकलने को है,मछलियों की अठखेलियाँ,
बादलों की शरारत या चिड़ियों का हो संगीत ,
कैसे कोई उठाये इस नींद से हमें ,
हम तो यूँही तेरे सपनो में खोये रहते हैं |
उसने जो ना मिलने का वादा किया है ,
अब तो हमने भी ना उठने की कसम खायी है ,
न कोई जंग है ना कोई लडाई है ,
हम तो यूँही मोहब्बत के इम्तिहान लेते हैं |
तेरी यादों की किताब को सीने लगाये रहते हैं ,
हम तो यूँही समुंदर की आघोष में रहते हैं |
सीमा राजपूत
२२ जून २०१२
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